सोमवार को भगवान शिव के विशेष स्थान ज्योतिर्लिंगों में भारी भीड़ उमड़ती है। ये पवित्र शिवलिंग पूरे देश में प्रतिष्ठित हैं और इनकी कुल संख्या बारह है। भगवान शिव के इन ज्योतिर्लिंग को प्रकाश लिंग भी कहा जाता है। ये पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केंद्र हैं। शिव को स्वयम्भू के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है स्वयं उत्पन्न। चलिए आपको हम लेकर चलते है 12 ज्योर्तिलिंग की यात्रा पर।

पहले स्थान पर आता है गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित सोमनाथ ज्योर्तिलिंग। कहा जाता है कि यहां भगवान शिवजी ने चंद्रमा को दक्ष प्रजापति के शाप से मुक्त किया था। इसी स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण ने एक शिकारी के तीर से अपने तलवे को बिंधवाया था और अपनी सांसारिक लीला समाप्त की थी। सोमनाथ जी का मंदिर अपने वैभव और समृद्धि के लिए भी विख्यात रहा है। इस मंदिर को कई बार देशी−विदेशी हमलावरों ने भी अपना निशाना बनाया।

दूसरे नंबर पर हैं कर्नाटक के कृष्णा जिले में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग। यह ज्योतिर्लिंग कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर है। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि श्री शैल के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

तीसरे स्थान पर आते हैं उज्जैन के राजा महाकाल। महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग क्षिप्रा नदी से कुछ दूरी पर स्थित है। महाकाल को उज्जैन का रक्षक भी कहा जाता है। यहां महाकाल का भस्म श्रृंगार किया जाता है।

चौथे स्थान पर आता है मध्य प्रदेश के शिवपुरी का ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग। मान्यता है कि एक बार विन्ध्य पर्वत ने छह महीने तक ओंकारनाथ की तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिवजी प्रकट हुए और विन्ध्यांचल को वरदान स्वरूप ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां पर वास करने का वचन दिया।

पांचवें स्थान पर उत्तर भारत का लोकप्रिय मंदिर केदारनाथ। यह ज्योतिर्लिंग हिमालय पर्वत श्रृंखला में केदार नामक पर्वत पर स्थित है। यह पर्वत हमेशा तीन ओर से बर्फ से ढंका रहता है। केदारनाथ तीर्थ की गणना केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के रूप में चार धामों में की जाती है। कहा जाता है कि बद्रीनाथ के दर्शन करने वाले भक्तों को पहले केदारनाथ के दर्शन करना जरूरी है अन्यथा उनकी तीर्थयात्रा का कोई फल नहीं मिलता।

छठे स्थान पर आता है महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110 किलोमीटर दूर सह्याद्रि पर्वत पर स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के सबसे पास का रेलवे स्टेशन पुणे रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 106 किलोमीटर दूर है। शिवजी ने राक्षस से युद्ध करने का निर्णय लिया। इस युद्ध में शिवजी ने भीम राक्षस को हरा दिया और उसे राख कर दिया। उस राक्षस के अंत के साथ सभी देवों ने शिवजी से आग्रह किया कि वो शिवलिंग के रूप में इसी स्थान पर विराजित रहें। भोलेनाथ ने इस प्रार्थना को स्वीकार किया और भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां विराजित हुए।

सातवें स्थान की ओर बढ़े तो बात आती है काशी स्थित विश्वनाथ मंदिर की। कहा जाता है कि प्रलयकाल में भी काशी नगरी का कुछ नहीं बिगड़ता। भगवान शिवजी इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और फिर सृष्टि की शुरुआत होने पर इसे नीचे उतार देते हैं।

आठवें स्थान पर है महाराष्ट्र के नासिक का त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग। यहां एक नहीं तीन छोटे−छोटे लिंग हैं, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीन देवों का प्रतीक कहा जाता है। इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग को त्र्यम्बकेश्वर कहा गया है।

नौवें नंबर पर चलते है झारखंड के देवधर में स्थित है श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग। कावड़ यात्रा के दौरान यहां बहुत ज्यादा भीड़ होती है और यहां तक जाने के लिए एक पहाड़ से होकर जाना पड़ता हैं और उस पहाड़ पर चुभने वाले पत्थर है वो भी प्राकृतिक।

दसवें स्थान पर है गुजरात के द्वारका का नागेश्वर ज्योतिर्लिंग। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका धाम से 17 किलोमीटर बाहरी क्षेत्र में स्थित है। नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है। भारत के द्वारिकापुरी में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के परिसर में भगवान शिव की एक बड़ी ही मनमोहक ध्यान मुद्रा में विशाल प्रतिमा बनाई गई है जिसकी वजह से मंदिर 3 किलोमीटर की दूरी से ही दिखाई देने लगता है। भगवान शिव जी की यह मूर्ति 80 फीट ऊंची तथा इसकी चौड़ाई 25 फीट है।

ग्यारहवें स्थान पर श्री राम द्वारा स्थापित रामेश्वर ज्योतिर्लिंग आता है। यह मंदिर बहुत सुंदर है। मंदिर की नक्काशी बहुत ही सुंदर है, आप देखकर हैरान रह जाएंगे। यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु की भीड़ उमड़ती है।

आखरी और बारहवें स्थान पर चले तो आता है महाराष्ट्र के औरंगाबाद में इलोरा गुफाओं के पास स्थित है श्री धुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग। धुष्मेश्वर महादेव के दर्शन से सभी पाप दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख ही सुख आ जाता है।

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