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Science Behind Hindu Temples

Science Behind Hindu Temples

सनातन धर्म क्या है?

सनातन यानी जिसका कोई अंत नहीं, जिसका कोई आदि नहीं. यह अकेला ऐसा धर्म है, जो सबकी भलाई की बात करता है. हमारे धर्म ग्रंथ वेद, पुराण, उपनिषद, श्रीमद्भगवद गीता, श्रीरामचरितमानस सब अलग-अलग काल खंड में लिखे गए और ये सब सनातन धर्म के आधार ग्रंथ हैं. राम और कृष्ण का जन्म अलग-अलग युग में हुआ, उन्होंने अपने जीवन से आदर्श प्रस्तुत किया तो वही दुष्ट शक्तियों का नाश करने में भी देर नहीं की, यही सनातन है और यही सच है. सनातन कभी किसी धर्म की आलोचना नहीं करता. वह सबमें समाया हुआ है. सनातन धर्म अरबों वर्ष पुराना है. सनातन धर्म में ग्रह-नक्षत्र भी समाए हुए हैं. सप्तऋषि, सप्ततीर्थ अयोध्या, मथुरा, माया यानी हरिद्वार, काशी-कांची, अवन्तिका यानी महाकाल की नगरी उज्जैन, पुरी, द्वारिकाधीश सनातन धर्म के आधार हैं. वाल्मीकि रामायण में 64 हजार तीर्थों की गणना की गयी है. चार युग में चार मंदिरों की चर्चा की गयी है. सतयुग में बद्रीनाथ-केदारनाथ, त्रेता में रामेश्वरम, द्वापर में द्वारिकाधीश तथा कलयुग में जगन्नाथ पुरी हैं. ऐसे में सनातन धर्म का रिश्ता सतयुग से है। सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो। जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कही गई है। जैसे सत्य सनातन है। ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है।

सनातन धर्म में मंदिर इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं?

पहले हम आपको मंदिर शब्द का अर्थ बताते है, एक ऐसा पवित्र स्थान जहां आपका मन और ध्यान – अध्यात्म के अलावा किसी अन्य चीज पर न जाए। मंदिर में व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है और साथ ही उसका मन भी शांत रहता है। आपने कई बार सुना होगा वास्तु शास्त्र के बारे में, इससे जुड़ी एक खास बात हम आपको बताते हैं, प्राचीन काल से अब तक जितने भी मंदिर बने है उन सभी की बनावट वास्तु शास्त्र के अनुसार की जा रही है। इसलिए मंदिर में जितने भी व्यक्ति जाते है उन सभी पर नकारात्मक शक्तियों का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है और मन सीधे-सीधे भगवान से जुड़ जाता है। जब आप मंदिर में रहकर भगवान की आराधना व ध्यान करेंगे तो आपके मन को आत्मिक संतुष्टि भी प्राप्त होगी और इसे भगवान की आराधना के लिए आवश्यक भी माना जाता है। आपने देखा होगा की लोग पूजा करने के बाद मंदिर की परिक्रमा करते है लेकिन क्या आपने सोचा की परिक्रमा क्यों किया जाता है और उत्तरी गोलार्ध से दक्षिण गोलार्ध की ओर ही क्यों घुमा जाता है। हम आपको बताते हैं। इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण भी छिपे हुए हैं। परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है। जिसका अर्थ दाएं ओर से घूमना होता है। जिस दिशा में घड़ी की सुई घूमती है उसी दिशा में मनुष्य को प्रदक्षिणा करनी चाहिए। माना जाता है कि जब व्यक्ति उत्तरी गोलार्ध से दक्षिण गोलार्ध की ओर घूमता है तब उस मनुष्य पर विशेष प्राकृतिक शक्तियों का प्रभाव पड़ता है और ऐसा माना जाता है कि देवस्थान की परिक्रमा करने से व्यक्ति के अंदर मौजूद सभी नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती है और देवी-देवता व इष्ट देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है

यहाँ मिला भगवन परशुराम का फरसा

मनुष्य का शरीर तो नश्वर है। लोग मृत्यु उपरांत कहते है की इस इंसान का अंत हो गया लेकिन उस इंसान का नए शरीर के साथ प्रारंभ भी है। अर्थ एक है की इंसान के अंत के साथ उसके शरीर का अंत होता है लेकिन आत्मा का नहीं बल्कि वो दूसरे शरीर में जन्म लेता है और वहां से जीवन का प्रारंभ होता है। अंत ही आरंभ है।
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