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सनातन धर्म क्या है?
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सनातन धर्म में मंदिर इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं?
पहले हम आपको मंदिर शब्द का अर्थ बताते है, एक ऐसा पवित्र स्थान जहां आपका मन और ध्यान – अध्यात्म के अलावा किसी अन्य चीज पर न जाए। मंदिर में व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है और साथ ही उसका मन भी शांत रहता है। आपने कई बार सुना होगा वास्तु शास्त्र के बारे में, इससे जुड़ी एक खास बात हम आपको बताते हैं, प्राचीन काल से अब तक जितने भी मंदिर बने है उन सभी की बनावट वास्तु शास्त्र के अनुसार की जा रही है। इसलिए मंदिर में जितने भी व्यक्ति जाते है उन सभी पर नकारात्मक शक्तियों का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है और मन सीधे-सीधे भगवान से जुड़ जाता है। जब आप मंदिर में रहकर भगवान की आराधना व ध्यान करेंगे तो आपके मन को आत्मिक संतुष्टि भी प्राप्त होगी और इसे भगवान की आराधना के लिए आवश्यक भी माना जाता है। आपने देखा होगा की लोग पूजा करने के बाद मंदिर की परिक्रमा करते है लेकिन क्या आपने सोचा की परिक्रमा क्यों किया जाता है और उत्तरी गोलार्ध से दक्षिण गोलार्ध की ओर ही क्यों घुमा जाता है। हम आपको बताते हैं। इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण भी छिपे हुए हैं। परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है। जिसका अर्थ दाएं ओर से घूमना होता है। जिस दिशा में घड़ी की सुई घूमती है उसी दिशा में मनुष्य को प्रदक्षिणा करनी चाहिए। माना जाता है कि जब व्यक्ति उत्तरी गोलार्ध से दक्षिण गोलार्ध की ओर घूमता है तब उस मनुष्य पर विशेष प्राकृतिक शक्तियों का प्रभाव पड़ता है और ऐसा माना जाता है कि देवस्थान की परिक्रमा करने से व्यक्ति के अंदर मौजूद सभी नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती है और देवी-देवता व इष्ट देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है